बड़ा इमामबाड़ा, एक विशेष दार्शनिक स्थल हैं न तो ये कोई मस्जिद हैं और न कोई मक़बरा हैं , उ.प्र की राजधानी लखनऊ में बना स्थल है। यह अपनी अद्भुत संरचना के लिए पुरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। यह हमेशा से एक विशेष टूरिस्ट प्लेस रहा है यहाँ पर देश-विदेश से हज़ारों लोग हर दिन आते है और इसका आनंद उठाते है। इसे 1783 में लखनऊ के नबाव आसफ - उद - दौला ने था इसलिए इसे आसिफ इमामबाड़ा भी कहते हैं । इमामबाड़ा, लखनऊ की सबसे उत्कृष्ट इमारतों में से एक है। एक परिसर में एक स्नानागार , एक भूलभूलैया - यानि भंवरजाल, एक बावड़ी या सीढियोंदार कुआं और नबाव की कब्र भी है जो एक मंडपनुमा आकृति की है। इमामबाड़ा की वास्तुकला, ठेठ मुगल शैली को प्रदर्शित करती है जो पाकिस्तान में लाहौर की बादशाही मस्जिद से काफी मिलती जुलती है और इसे दुनिया की सबसे बड़ी पाचंवी मस्जिद माना जाता है।यह मुग़ल सल्तनत का प्रतिक है। इस इमारत की डिजायन की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें कहीं भी लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया है ।इसके किफ़ायतुल्लाह की वास्तु संरचना के आधार पर बना गया है जिनको ताजमहल के वास्तुकार के रूप में जाना जाता हैं। वाकई में ये एक अद्भुत इमारत है जिसको देखे बिना कोई नई रह सकता। इस इमारत कामुख्य हॉल 50x16x15 मीटर का है जहां छत पर कोई भी सपोर्ट नहीं लगाया गया है। बड़ा इमामबाड़ा वास्तव में एक सूंदर से आंगन के बाहर फैला हुआ हॉल हैं,जहा पर दो तिहरे आर्च देखने को मिलते है जिनसे पहुंचा जा सकता है। इसका मध्य भाग ५० मीटर लम्बा और १६ मीटर चौड़ा है इस हॉल कोई भी खम्बा नहीं है बाबजूद १५ मीटर ऊँची छत हैं। इसमें बिना किसी पिलर या गर्डर के बस ईटों को आपस में जोड़ कर बनाया है जो की अपने आप में अद्भुत है।
इनमें कुल 489 दरवाजे हैं जो हमलोग याद नहीं रख सकते है ऐसा लगता है मनो इसके अंदर जाने पर सब रास्ते भूल जाते है , इसलिए इसको भूल भूलैया भी कहते हैं।
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