Friday, 29 September 2017

जाने पुराणों की जन्मभूमि के बारे में--नैमिषारण्य (सीतापुर)

पुराणों की उत्त्पत्ति का रहस्य --    भारत के  उत्तर प्रदेश में  सबसे पवित्र स्थानों में से एक है-नैमिष ,जोकि सीतापुर के एक छोटे से शहर  में पड़ता हैं। यह हिन्दू सभ्यता का साक्षात प्रतीक  है।
 स्कंद पुराण में दी गई "सत्यनारायण व्रत कथा" (एक नियमित धार्मिक हिंदू परंपरा) को पहली बार था।  ऐसा भी माना जाता है की यहाँ पर असुरों  के  वध के लिए भगवान विष्णु ने अपना चक्र  यहीं पर छोड़ा था। जिसको चक्र तीर्थ के नाम से जानते हैं यहां  पर धरती से स्वंम से पानी निकलता हैंऔर एक नाले के द्वारा बाहर की ओर बहता रहता है, जिसे 'गोदावरी नाला' कहते हैं।। ये षट्कोणी आकार का हैं। चक्र तीर्थ के अतिरिक्त व्यासगद्दी, ललिता देवी का मंदिर, भूतनाथ का मंदिर, कुशावर्त, ब्रह्मकुंड, जानकीकुंड और पंचप्रयाग आदि आकर्षक स्थल हैं।
ऐसा कहा जाता है कि हिंदुओं की सबसे पवित्र किताबें "पुराण" इस पवित्र स्थान पर महिर्षी व्यास द्वारा लिखी गई थीं। पवित्र सत्यनारायण कथा की शुरुआत में इस स्थान का एक उल्लेख है"'नैमिष' की व्युत्पत्ति 'निमिष' शब्द से बताई जाती है, क्योंकि गौरमुख ने एक निमिष में असुरों की सेना का संहार किया था (कर्निघम, आ.स.रि. भाग १)। एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार इस स्थान पर अधिक मात्रा में पाए जानेवाले फल निमिष के कारण इसका नाम नैमिष पड़ा। व्युत्पत्ति के विषय में तीसरा मत है कि असुरों के दलन के अवसर पर विष्णु के चक्र की निमि नैमिष में गिरी थी (मत्स्य २२/१२/१४, वायुपुराण १/१५, ब्रह्माण्ड पुराण१/२/८)। किंतु दूसरे आख्यान के अनुसार जब देवताओं का दल महादेव के नेतृत्व में ब्रह्मा के पस असुरों के आतंक से पीड़ित होकर पहुँचा, तो ब्रह्मा ने अपना चक्र छोड़ा और उन्हें वह स्थान तपस्या के लिए निर्देशित किया जहाँ चक्र गिरे। नैमिष में चक्र गिरा अत: वह स्थल आज भी चक्रतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। चक्रतीर्थ षट्कोणीय है। व्यास १२० फुट है। पवित्र जल नीचे के सोंतों से आता है  चक्र तीर्थ के अतिरिक्त व्यासगद्दी, ललिता देवी का मंदिर, भूतनाथ का मंदिर, कुशावर्त, ब्रह्मकुंड, जानकीकुंड और पंचप्रयाग आदि आकर्षक स्थल हैं।



 ये जो ऊपर चित्र है ये ललिता माता का हैं ये नैमिष का सबसे पूजनीय स्थान है यहा  पर दर्शन को हज़ारों श्रद्धालु हर दिन आते हैं। 
लोगों के ये भी मान्यता हैं कि प्राचीन समय के दौरान लगभग 88 हजार संत और ऋषि इस स्थान पर ध्यान करते थे। बाल्मीकि ने रामायण में, इस स्थान को नामीशा के रूप में लिखा हैं  किया गया है और यह भी कहा जाता है कि एक बार श्रीराम ने इस स्थान पर अश्वमेघ यज्ञ को पूरा किया था जिसमें महाकवि  बाल्मीकि, लव और कुश भी शामिल हुए थे।




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